जनता का हाल-बेहाल, भ्रष्टाचारी बने मालामाल

ब्यूरो रिपोर्ट। एक अरब से अधिक की आबादी वाले भारत में दरिद्रता चक्र में फंसी एक चैथाई आबादी भूख से व्याकुल है। पौष्टिक भोजन तो दूर की बात है, दाल-रोटी भी जनता को बड़ी कठिनाई से मिल पा रही है। देश में प्रजातंत्र है। सरकार जनता की है, जनता के लिए है और जनता ने ही चुनी है, तो फिर ऐसी सरकार की जरूरत क्यों है जिनके राज में पानी खरीद कर पीना पड़े, दो समय की रोटी के लिए खून बेचना पड़े?
अगर समय रहते केंद्र व राज्य सरकारों की आंखें नहीं खोली गई तो वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिए शुद्ध हवा भी खरीद कर लेनी पड़े? अब देश में ऐसी कौन सी चीज बची है जो नहीं बिकती? राजनेता, सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों पर भी बिकने के आरोप लगे हंै। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा होगा जहां भ्रष्टाचार ने कहर न ढाया हो। यहां चपरासी से लेकर आफिसर तक और अधिकारी से लेकर मंत्री तक पूरी संकल कीड़े-मकोड़े की तरह रेंगकर सोने की चिड़िया कहने वाले भारत को दीमक की तरह चाटकर खोखला बना रहे हैं।
ऐसे हालत में क्या देश का कोई नागरिक गर्व से यह कह सकता है कि वह देवताओं की भूमि भारतवर्ष में रहते हैं। चरित्र निर्माण की उपेक्षा का ही दुष्परिणाम है कि आज मंत्रियों पर अपराधियों की तरह आरोपों की बौछार हो रही है। प्रशासकीय अधिकारियों के बढते हुए भ्रष्टाचार उजागर हो रहे हैं जिससे शीश शर्म से झुक जाता है। कहते हैं कि एक व्यक्ति से बड़ा परिवार, परिवार से बड़ा समाज और समाज से बड़ा देश होता है। विपत्ति के समय परिवार के लिए खुद को, समाज के लिए परिवार को और देश के लिए समाज को कुर्बान कर देना चाहिए लेकिन आज देश में ऐसा हो तब दिखाई नहीं देता? उल्टे ऐसे लोग हैं जो स्वयं को परिवार, समाज और देश से बडा समझने लगे हैं। महंगाई, विस्थापना, पुनर्वास, बढती असुरक्षा, भूख को लेकर सरकार की नीति कुछ है भी कि नहीं और अगर है तो वह इस कदर बेअसर क्यों है। देश में करोड़ों गरीब ऐसे हैं जिनके पास अनाज खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। उनको दो टाइम की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हो रही। हमारे नेता इन्हीं गरीबों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर सत्ता तक पहुंचकर मलाई खा रहे हैं।
विकास के नारे लगाने वाले नेता क्या पैसे की चकाचैंध में अंधे हो गए हैं जिन्हें लाखों भूखे, नंगे, अशिक्षित, भिखारी, गंदी बस्तियों व झोपड़ पट्टियों में रहने वाले लोग, जंगलों में निवासरत आदिवासियों की दशा दिखाई नहीं देती। क्या वे भारत के वासी नहीं है? चारों ओर अवसरवादी, सत्तालोलुप, आसुरी वृत्ति के लोग ही दिखाई देते है।
शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र, जहां कभी सेवा के उच्चतम आदर्शों का पालन होता था, आज व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के केंद्र बन गए हैं। व्यापार में तो सर्वत्र कालाबाजारी, बेईमानी, मिलावट, टैक्सचोरी आदि ही सफलता के मूल मंत्र समझे जाते हैं। त्याग, बलिदान, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी, श्रमशक्ति का सर्वत्र उपहास उड़ाया जाता है। गरीबी और महंगाई आज देश की गंभीर समस्या हैं। हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं में अपराधियों की भरमार होती जा रही है।
क्या यही बापू के सपनों का भारत है? मंत्री, अफसर सहित सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों की कठपुतली बनते जा रहे हैं। हर तरफ फैली गंदगी, बढ़ता हुआ प्रदूषण, दूषित पेयजल और घटिया स्तर की खाद्य सामग्री की खुलेआम बिक्री, सार्वजनिक स्थलों में साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था न होने से लोग भयानक बीमारियों से ग्रसित होते जा रहे हैं और डॉक्टरों, अस्पतालों, दवाइयों पर खर्च कर बरबाद हो रहे हैं।
उच्च जीवन मूल्यों और उदात्त संस्कृति का ढिंढोरा पीटने वाले देश के नेताओं को भ्रष्टाचार का घुन लग गया है। कितने अफसोस की बात है कि हमारे देश का समावेश दुनियां के भ्रष्ट देशों की सूची में काफी ऊंचाई पर है। यहां मंत्री से संत्री तक भ्रष्टाचार में लिप्त पाये जाते हैं। जानबूझकर देश के भ्रष्ट व बेईमान नेताओं ने देश को गरीब बनाया हुआ है। देश से यदि भ्रष्टाचार मिट जाये तो देश में एक भी व्यक्ति बेरोजगार व गरीब नहीं रह सकता? एक षड्यंत्र के तहत लोगों को बेरोजगार, गरीब एवं अनपढ बनाया हुआ है ताकि भ्रष्ट शासक देश के गरीब, बेरोजगार, अनपढ एवं अशिक्षित लोगों पर मनमाने ढंग से शासन कर सकें अथवा लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही चला सकें।

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