तमाम कष्ट सहकर बाबा केदार की चौखट पर पहुंच रहे भक्त

यह भगवान शिव के प्रति श्रद्धा ही तो है कि विपरीत मौसम व विषम परिस्थितियों में भी भक्त तमाम कष्ट सहकर बाबा की चौखट पर पहुंच रहे हैं। कई भक्त तो नंगे पांव ही 16 किमी की कठिन चढ़ाई पार कर दर्शनों को आ रहे हैं। यही वजह है कि यात्रा शुरू होने के चार दिन में ही 30 हजार से अधिक यात्री केदारपुरी पहुंच चुके हैं। वर्ष 2013 की आपदा के बाद लगने लगा था कि कम से कम दस साल तक तो यात्री केदारनाथ आने के बारे में दस बार सोचेंगे। लेकिन, बाबा की कृपा देखिए कि आपदा के मात्र तीन साल बाद ही यात्रा पुरानी रंगत में लौट आई। आपदा के बाद सुनसान पड़े गौरीकुंड, सीतापुर, सोनप्रयाग, रामपुर, जंगलचट्टी जैसे तमाम पड़ावों पर यात्रियों की भारी भीड़ है। कर्नाटक, बिहार, हरियाणा, दिल्ली, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु समेत देश के विभिन्न प्रदेशों से यात्री बाबा के दर्शनों को केदारधाम पहुंच रहे हैं।

आपदा के बाद यात्रा के स्वरूप में भी कई बदलाव आए हैं। यात्रा न सिर्फ पहले की तुलना में कठिन हुई है, बल्कि पैदल मार्ग की दूरी भी दो किमी अधिक हो गई है। रहने-खाने की व्यवस्थाएं भी पहले की तुलना में सीमित हैं, लेकिन शिव भक्तों को इस सब की परवाह कहां। वह तो आस्था की डोर में बंधे खिंचे चले आ रहे हैं। कई भक्त तो कड़ाके की ठंड के बावजूद नंगे पांव ही बाबा की शरण में पहुंच रहे हैं। हालांकि, नंगे पांव आने पर प्रशासन ने यात्रियों के लिए एडवाइजरी जारी की है। ताकि ठंड में उनकी तबीयत न बिगड़े। फिर भी कई यात्री नंगे पांव यात्रा कर रहे हैं। केदारनाथ पहुंचने वालों में युवाओं के साथ बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग व विदेशी भी शामिल हैं। लेकिन, 16 किमी का पैदल सफर तय करने के बाद भी किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं। कपाट खुलने वाले दिन ही नौ हजार से अधिक यात्रियों ने केदारपुरी पहुंचकर बाबा के दर्शन किए। जबकि, चार दिन में यह संख्या 30 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। इस बार कपाट खुलने के दिन से ही उम्मीद से ज्यादा यात्री केदारधाम पहुंच रहे हैं। लेकिन, पैदल जाने में असमर्थ यात्रियों को यात्रा पड़ावों पर घोड़े-खच्चर न मिलने से खासी परेशानी उठानी पड़ रही है। धाम के लिए हवाई सेवाएं अभी तक शुरू नहीं हो पाई हैं, जिससे उनकी परेशानियां और बढ़ गई हैं। गौरीकुंड से केदारनाथ तक पूर्व में पर्याप्त संख्या में घोड़े-खच्चर व पालकी की व्यवस्था रहती थी, लेकिन आपदा के बाद इसमें कमी आई है। यात्रा के लिए अब तक 2500 घोड़े-खच्चरों का ही रजिस्ट्रेशन हुआ है।

इनमें भी अधिकतर सामान ढोने में लगे हैं। जबकि, प्रतिदिन छह हजार से अधिक यात्री दर्शनों को पहुंच रहे हैं। बंगलुरु से आए किशोरी ङ्क्षसह कहते हैं कि वह परिवार के साथ दर्शनों को आए थे, लेकिन लिनचोली से आगे बढऩे की हिम्मत नहीं जुटा पाए। सो, गौरीकुंड वापस लौटना पड़ा। पटना के सूरज मंडल कहते हैं कि गौरीकुंड से पैदल आगे बढऩे की हिम्मत जुटाई, लेकिन भीमबली पहुंचकर वह जवाब दे गई। ऐसे में बाबा के दर्शनों की इच्छा अधूरी रह गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *