शंकर का प्रसिद्ध मंदिर टपकेश्वर महादेव

(www.kaumiguldasta.com): उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में स्थित मंदिर ‘टपकेश्वर महादेव’ भगवान शंकर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। गुफा में स्थित इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग पर छत से प्राकृतिक रूप से पानी टपकता रहता है जिसके कारण इसे टपकेश्वर मंदिर कहा जाता है। प्राचीन काल के इस मंदिर में भगवान महादेव के अलावा काल भैरव, वैष्णो देवी, संतोषी माता, काली माता, हनुमान जी, शिव शंकर परिवार, राम दरबार और गुरु कपिल मुनि की भी भव्य मूर्तियां हैं। इस मंदिर में एक अखण्ड ज्योति भी दिन रात जलती रहती है। यहां के संतोषी माता मंदिर के बारे में तो कहा जाता है कि यहां मांगी जाने वाली सभी मुरादें पूरी होती हैं। टपकेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राक्ष से बना शिवलिंग श्रद्धालुओं के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहता है।

टपकेश्वर महादेव मंदिर छोटी बड़ी गुफाओं पर बना है खासकर वैष्णो देवी मंदिर में तो माता के दर्शन से पहले बहुत छोटी और संकरी गुफा से गुजरना पड़ता है। तमसा नदी के तट पर बसा यह मंदिर काफी गहराई पर बसा है। नदी के साथ ही मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। शिवरात्रि पर्व पर और श्रावण मास में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। श्रावण मास में यहां निकलने वाली शोभायात्रा की भव्यता तो देखते ही बनती है।

यह मंदिर देहरादून सिटी सेंटर से 5.5 किमी दूर सेना के गढ़ी छावनी क्षेत्र में स्थित है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यहां देवतागण भी तपस्या कर भगवान शिव के आशीर्वाद से मनवांछित फल पाते थे। यह मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। यहां तक पहुंचने के लिए आसानी से टैक्सी, बस तथा आॅटो रिक्शा उपलब्ध हैं। यदि आप सार्वजनिक वाहन से यहां आए हैं तो आपको पूरे मंदिर के दर्शन के लिए एक घंटे का समय दिया जाता है यदि आप ज्यादा समय लेते हैं तो आपसे वाहन चालक द्वारा प्रतीक्षा शुल्क लिया जाएगा। यहां स्थित संतोषी माता मंदिर में लगभग सभी प्रमुख देवी देवताओं की मूर्तियां स्थित हैं और साथ ही उनके पूजन के मंत्र लिखे हुए हैं।

इस मंदिर को गुरु द्र¨णाचायर््ा की तपस्थली भी कहा जाता है। यहीं पर आचार्य द्रोणाचार्य को भगवान शंकर ने टपेश्वर के रूप में दर्शन देकर अस्त्र शस्त्र एवं दिव्य ज्ञान दिया था। यह भी कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने इस मंदिर की गुफा में छह माह तक एक पांव के बल पर खड़े होकर भगवान शंकर की तपस्या की और जब भगवान प्रकट हुए तो उनसे दूध मांगा। इसके बाद से ही पूर्णमासी के दिन यहां स्थित शिवलिंग के ऊपर दूध की धारा बहने लगी। इसी दूध से अश्वत्थामा ने अपनी भूख और प्यास मिटाई थी। मान्यताओं के मुताबिक कलियुग के आरम्भ होने से पहले तक यहां शिवलिंग पर दूध की धारा बहती थी जोकि कलियुग के आगमन पर बंद हो गई। उससे पहले यह षिवलिंग दूधेश्वर के नाम से प्रसिद्ध था।

यहां मौजूद शिवलिंग पर दुग्ध की धारा बहना बंद होने के बारे में एक और मान्यता यह है कि कालांतर में जब इस पवित्र दुग्धधारा का दुरुपय्ा¨ग ह¨ने लगा, तो माता पार्वती ने दुःखी होकर भगवान षिव से दुग्धधारा बंद करने का आग्रह किय्ाा, जिसके बाद यहां जलधारा बहने लगी। पर्वत से जल की बूंदें टपकने के कारण इस स्थान का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ गया।

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