सौन्दर्यीकरण के नाम पर लाखों-करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं सुधरी स्थिति

देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण के बाद से लेकर अब तक स्थानीय नगर निगम की कार्यशैली कों पढ़ा व देखा जाए तो उसकी अपने ही कार्यों के प्रति जिम्मेदारी काफी अधिक लापरवाह होने के साथ.साथ गैर जिम्मेदारान रही है। राजधानी के सौन्दर्यीकरण के नाम पर इसी नगर निगम द्वारा लाखों.करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद भी दून शहर आज अपनी ही बदहाली पर आंसू बहा रहा है। चाहे वह मुख्य चौराहों के सौन्दर्यीकरण किये जाने की बात होए या फिर राजधानी के बीचों.बीच स्थित ऐतिहासिक गांधी पार्क की दशा सुधारने का मामला ही क्यों न हो।
नगर निगम की कार्यशैली पर भी विभिन्न कार्यों को लेकर अब सवालिया निशान लगना आम बात हो गयी है। उस पर अनेक घोटालों के आरोप भी समय.समय पर लगते रहे है। सौन्दर्यीकरण को लेकर पिछले करीब दो दशक के लम्बे समय से शहर को खूबसूरत बनाये जाने के लिए नगर निगम के अधिकारी अपने दफतर से लेकर सचिवालय तक दौड़ लगा चुका है और लाखों.करोडा़ें खर्च करने के बाद भी शहर को खूबसूरत बनाने से महरूम रखे हुए है। राजधानी के बीचों.बीच स्थित ऐतिहासिक गांधी पार्क की दशा भी आज इसी नगर निगम के लापरवाह होने के कारण बदहाल नजर आ रही है। गांधी पार्क के अन्दर बने बड़े फव्वारे की बदहालत पर भी काफी रूपया यही नगर निगम खर्च कर चुका है। लेकिन यह फव्वारा आज खण्डहरनुमा नजर आ रहा है। इस फव्वारे में तकनीकि दृष्टि से काफी सामान लगा हुआ है परन्तु वह सामान आज जंग खा रहा है। उसमें न तो पानी ही है और न ही उसकी साफ.सफाई की ही कोई सुध ली जा रही है। वर्षों से गांधी पार्क के इस फव्वारे का संचालित न होना जहां राज्य के लिए दुर्भाग्य की बात है बल्कि नगर निगम की कार्यशैली पर भी अब विश्वास मानों उठ चुका है।

सौन्दर्यीकरण के नाम पर राजधानी में सिर्फ लूटखसोट का ही खेल खेला जाता रहा है। इसके अलावा गर्मी के इन दिनों में भी गांधी पार्क का यह फव्वारा अक्सर बंद ही पड़ा रहता है। पर्यटक व स्थानीय लोग प्रतिदिन इसी गांधी पार्क में हजारों की संख्या में घूमने के लिए आते हैंए लेकिन वहां के नजारे देखकर उनमें निराशा उत्पन्न हो जाती हैं। बहरहालए नगर निगम के बड़े फव्वारे की दशा देखकर सभी आने.जाने वाले पर्यटक व स्थानीय लोग निगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे है।

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