1857 के संग्राम की 160वीं वर्षगांठ के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन

देहरादून। सबक पढ़ सदाकत का, अदालत का, शुजाअत का, काम लिया जाएगा तुझसे दुनियां की इमामत का। अल्लामा इकबाल के इस शेर के साथ अपनी बात कहते हुए मुस्लिम यूनिवर्सिटी विधि विभाग के प्रमुख डा0 शकील सम्दानी ने कहा कि 1857 की जंगे आजादी में मुल्क के सभी नागरिकों ने इकत्रित होकर दुश्मनों का मुकाबला किया था। जिसके परिणाम स्वरूप लंबे सघर्ष के बाद 1947 में देश आजाद हुआ। हमे वर्तमान परिपेक्ष में उसी एकजुटता का प्रमाण देना आज की प्रबल जरूरत है।
गुरूवार को नगर निगम में 1857 स्वतंत्रता संग्राम की 160वीं वर्षगांठ पर भाईचारा व एकता आज की जरूरत विषय पर आयोजित गोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए सम्दानी ने यह बात कही। उन्होंने 1857 के विद्रोह पर विस्तार से प्रकाश डाला इस महासग्राम के शहीदों को श्रधाजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि देश पर हालत आते रहते है। जनता जब तक एक जुट होकर हालातों से लड़ती है तो सफलता अवश्य मिलती है। स्वतंत्रता संग्राम इसका प्रमाण है। आज के परिपेक्ष में आपसी भाईचारे को मजबूत करने के लिए सभी को आगे आना होगा। उन्होंने शिक्षा पर अधिक खर्च करने और माताओं को अपने बच्चों पर ध्यान देने का आहवान किया। इस अवसर पर आचार्य लोकेन्द्र शास्ती ने कहा कि जो भाई को भाई से लड़ाने का काम करते है ऐसे लोगों से हम सभी सचेत रहने की जरूरत है। डा फारूख ने 1857 के शहीदों के संबध में विस्तार से अपने विचार रखे। सभी वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि जिस प्रकार देश को आजाद कराने में सभी कौमे एक साथ मिलकर लड़ रही थी। वैसे ही अब भ्रष्टाचार और देश को बांटने वाली ताकतों के खिलाफ एक जुटता दिखानी होगी।
कार्यक्रम संयोजक पूर्व राज्य मंत्री याकूब सिद्दिकी ने कहा कि 1857 से लेकर 1947 तक लाखों लोगों ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान की है। तब जाकर हमे आज आजाद भारत में सांस लेने का मौका मिल रहा है। आज की नौजवान पीढ़ी को देश की आजादी की खातिर अपने प्राणों की आहूती देने वालों को आत्मसात करने की जरूरत है। शहर काजी ने कहा कि आज के दौर में उन शहीदों को भुला दिया गया है जिन्होंने आजादी के लिए अपना घर और अपनी जाने गंवाई है। ऐसे बलिदानियों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम में पूर्व राज्यमंत्री मेजर कादिर हुसैन, शहरकाजी मौलाना मौहम्मद अहमद कासमी, नायब शहरकाजी अशरफ हुसैन कादरी, प्रधन अब्दुल अजीज, खुर्शीद अहमद, नुसरत एन. खान, इंजीनियर अब्दुल रहमान, अशोक वर्मा, फादर दयाल जोजफ, शेख इकबाल अहमद, हुसैन अहमद, मुनीष अथहर, फरहान फारूखी, शाकिर अली आदि मौजूद रहे।

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