उत्तराखण्ड

बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की प्रक्रिया आज से शुरू, पंच पूजाओं के साथ होता है देवताओं का आगमन

बदरीनाथ धाम में कपाट बंद करने से पहले होने वाली पंच पूजाओं का विशेष धार्मिक महत्व है। लोक मान्यता के अनुसार पंच पूजाओं के दौरान धाम में देवताओं का आगमन शुरू हो जाता है और कपाट बंद होने के बाद छह माह तक बदरीविशाल की पूजा-अर्चना का अधिकार देवताओं का होता है। बदरीनाथ धाम में कपाट बंद होने से पांच दिन पहले पंच पूजाएं शुरू हो जाती हैं। विभिन्न मंदिरों में इस सीजन की अंतिम पूजाएं करने के बाद उन मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसे ही पंच पूजाएं कहा जाता है। बदरीनाथ की पंच पूजाएं अनूठी होती हैं। मंदिर में पंच पूजाओं की शुरुआत गणेश मंदिर से होती है। सभी मंदिरों में अंतिम दिन पूजा-अर्चना रावल की ओर से की जाती है। विभिन्न पूजाएं करने के बाद गणेश मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। दूसरे दिन आदिकेदारेश्वर मंदिर में अन्नकूट का आयोजन होता है। भगवान भोलेनाथ को पके चावलों का भोग लगाया जाता है और शिवलिंग को अन्नकूट से ढक दिया जाता है। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद कर लिए जाते हैं। तीसरे दिन खड़क पुस्तक पूजन और वेद ऋचाओं का वाचन बंद होगा, चौथे दिन माता लक्ष्मी को कढ़ाई भोग अर्पित किया जाएगा। इसके बाद विधि विधान से बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

छह माह मनुष्य और छह माह देवता करते हैं पूजा

बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि शास्त्रों के अनुसार पौराणिक काल से चली आ रही परंपराओं के अनुसार बदरीनाथ में छह माह मनुष्य की ओर से और छह माह देवताओं की ओर से भगवान बदरीनाथ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जैसे ही पंच पूजाएं शुरू होती हैं धाम में देवताओं का आगमन शुरू हो जाता है। शीतकाल में कपाट बंद होने के बाद पूजाओं का दायित्व देवताओं को दिया जाता है। फिर अगले साल वैशाख माह शुरू होने पर पूजा का अधिकार मनुष्यों के पास वापस आ जाता है।

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