नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह की चुनौतियां
पूर्व मंत्री स्वर्गीय गुलाब सिंह के पुत्र प्रीतम सिंह सबसे पहले वर्ष 1993 में चकराता विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। उत्तराखंड गठन के बाद से वो लगातार चकराता सीट से विधायक हैं। वर्ष 2002 की एनडी तिवारी सरकार और वर्ष 2012 की विजय बहुगुणा और हरीश रावत सरकार में भी वो काबीना मंत्री रहे। प्रदेश और केंद्रीय संगठन में भी प्रीतम सिंह कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। प्रीतम सिंह को राजनीति विरासत में मिली है। प्रीतम सिंह के पिता स्वर्गीय गुलाब सिंह चकराता से आठ बार विधायक का चुनाव जीते हैं। एक बार स्वर्गीय गुलाब सिंह चकराता से निर्विरोध विधायक चुने गये। यूपी विधानसभा में तब निर्विरोध विधायक चुने जाने का उनका एक रिकार्ड है। यूपी सरकार में स्वर्गीय गुलाब सिंह मंत्री रहे हैं और जौनसार बावर को जनजाति क्षेत्र घोषित कराने सहित कई महत्वपूर्ण कार्य किये। 1989 में गुलाब सिंह ने अंतिम चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उसके बाद गुलाब सिंह ने अपनी राजनीतिक विरासत प्रीतम सिंह को सौंपी। जिसे प्रीतम सिंह न सिर्फ बरकरार रखे हुए हैं, बल्कि उसे आगे बढ़ा रहे हैं।
उत्तराखंड कांग्रेस के चौथे कप्तान चकराता विधायक प्रीतम सिंह को विरासत में कांटों का ताज मिला है। उनके सामने कई चुनौतियां हैं। विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद संगठन स्तर पर यह बदलाव किया गया है। चुनाव में हार के बाद से किशोर उपाध्याय के बदले जाने की चर्चाएं तेज थी। नवनियुक्त कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि मैं कांग्रेस का छोटा सा समर्पित सिपाही हूं। सभी कांग्रेसजन मिलजुल कर पार्टी को मजबूत कर आगे ले जाने के लिए काम करेंगे। बता दें कि चकराता विधायक और पूर्व काबीना मंत्री प्रीतम सिंह कांग्रेस के नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। वहीं मंगलौर के विधायक काजी मोहम्मद निजामुद्दीन को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है। कांग्रेस हाईकमान ने गुरुवार को प्रीतम के नाम का ऐलान किया था। यूपी और उत्तराखंड में पांच बार के विधायक प्रीतम राज्य में कांग्रेस की दोनों सरकारों में काबीना मंत्री भी रहें हैं। प्रीतम सिंह राज्य में कांग्रेस के चौथे प्रदेश अध्यक्ष हैं। विधानसभा चुनाव में हार की वजह से पार्टी के टूटे मनोबल को वापस लाना। बगावत की वजह से पैदा हुई प्रभावी नेताओं की कमी को दूर करना। वर्ष 2018 में निकाय चुनाव में पार्टी को मजबूती से उभाकर आगे लाना होगा। वर्ष 2019 में पंचायत और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को देनी है बड़ी परीक्षा। विधानसभा में धमक बरकरार रखना। महज 11 विधायकों के साथ पार्टी की आवाज विधानसभा में भी कमजोर हो चुकी है।