सरस्वती के मंदिर में कारोबार

आखिरकार कोर्ट को आदेश देना पड़ा कि निजी स्कूलों में किताब-कॉपी और स्कूल ड्रेस बेचना बंद करें। विडंबना देखिये कि जो काम स्थानीय प्रशासन और शासन को करना चाहिये था, उसके लिये न्यायालय को निर्देश देने पड़ रहे हैं। फिर कोर्ट पर न्यायिक सक्रियता के आरोप नेता लगाते हैं। बहरहाल निजी स्कूलों में अभिभावकों को लूटने के लिये जो तरह-तरह हथकंडे अपनाये जा रहे हैं, उसके खिलाफ पूरे देश में गुस्सा है। एक तरफ फीस में मनमानी बढ़ोतरी, कई तरह के शुल्क और दूसरी तरफ अभिभावकों को स्कूल से ही बच्चों की कॉपी-किताब और ड्रेस खरीदने के लिये मजबूर किया जाता है। बाजार भाव से कई गुना ऊंचे दामों पर मिलने वाली सामग्री को लेकर अभिभावक संगठन पूरे देश में आंदोलनरत रहे हैं। इसी क्रम में दायर एक जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की एक पीठ ने सीबीएसई को निर्देश दिये कि वह स्कूलों के परिसर में कॉपी-किताब व ड्रेस बेचने पर सख्त कदम उठाये। वर्ष 2011 में जारी निर्देशों के अनुपालन के आदेश दिये गये? थे, मगर क्रियान्वयन सुनिश्चित नहीं हो पाया। अभिभावकों को मजबूर कर ड्रेस व जूते आदि बेचने का क्रम बदस्तूर जारी है।
दरअसल, जब से सरकारी स्कूल बदहाली की स्थिति में पहुंचे हैं, निजी स्कूल कारोबार में तबदील हो गये। अभिभावकों को मजबूर मानकर तरह-तरह के नियम बनाकर पैसा वसूला जा रहा है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड समेत तमाम निगरानी संस्थाएं हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। दरअसल निजी स्कूल राजनेताओं, धन्ना सेठों व प्रभावशाली लोगों के हैं। उधर समाज में यह सोच बलवती हुई है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना उन्हें स्पर्धा की दौड़ से बाहर कर देना है। इसी सोच का फायदा उठाकर निजी स्कूल अभिभावकों को स्कूल में अथवा स्कूल द्वारा निर्धारित दुकानों से किताब-कापी व ड्रेस खरीदने को बाध्य कर रहे हैं। सामान के विक्रेता स्कूलों को भरपूर कमीशन देने की बात करते हैं और इसमें अपना मुनाफा जोडक़र अभिभावकों से वसूल रहे हैं। ऐसा न करने पर छात्रों को दंडित व परेशान किया जाता है। यह बात बीते जमाने की हो गई कि स्कूल सामुदायिक सेवा की भावना से चलाये जाएं। जबकि ये स्कूल काफी कम दाम पर जमीन व अन्य सुविधाएं हासिल करते हैं। अभिभावक स्टेटस सिंबल मानकर इन स्कूलों में जाते हैं और स्कूल अभिभावकों को उलटे उस्तरे से मूंड रहे हैं। न्यायालय की सक्रियता के साथ आज जरूरत इस बात की है कि पूरे देश? के निजी स्कूलों में फीस निर्धारण और अन्य कायदों के लिये देशव्यापी कानून बने। साथ ही उसका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित किया जाये।

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