उत्तराखंड की सर्वोत्तम झील नैनीताल झील

उत्तराखंड की सर्वोत्तम झील नैनीताल झील है। यह 1,500 मीटर लम्बी, 510 मीटर चौड़ी तथा 30 मीटर गहरी है। यह झील अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए लाखों पर्यटकों को बार-बार आने के लिए आमन्त्रित करती है। सात पहाड़ियों से घिरी इस झील के संदर्भ में पौराणिक गाथा है। कि इस झील का निर्माण पुलस्य और पुलह ऋषियों द्वारा किया गया था। नैनीताल अथवा नयनताल के बारे में कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में जब अपने पति शिव का अपमान न सह पाने के कारण सती ने अग्निदाह कर लिया तो क्रोधित शिव ने सती के शव को कंधे पर उठा कर तांडव नृत्य किया। सती के शरीर के 51 टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां-वहां एक-एक शक्तिपीठ स्थापित हुआ। इस स्थान पर सती की बायीं आंख गिरी, वहीं नयनताल या नैनीताल स्थित है। नैनीताल सात पहाड़ियों से घिरा है- आयर पात, देव पात, हाड़ीवादी, चीना पीक, आलम, लरिया कांटा और शेर का डांडा। चीना पीक से पूरा नैनीताल दिखाई देता है। यह 8,568 फुट ऊंची है।

सर्वप्रथम इस स्थान के सौंदर्य से सन् 1841 की 18 नवम्बर को शाहजहांपुर के श्री पी. बैरन अभिभूत हुए थे, जो कुमाऊ मंडल में घूमते हुए एकाएक यहां आ पहुंचे थे। उन्होंने वहां पर ‘पिलग्रिम काटेज’ नामक घर बनवाया और इस स्थल की ओर संसार के पर्यटन प्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया।

भौगोलिक परिवर्तनों ने नैनीताल के सौंदर्य में द्विगुणित अभिवृद्धि की है। समय-समय पर होने वाले भूस्खलनों में 1866 से 1869 के बीच होने वाले भू-स्खलन नैनीताल के लिए उपयोगी सिद्ध हुए। 16 सितम्बर 1880 में हुआ भू-स्खलन तो नैनीताल के लिए वरदान सिद्ध हुआ, यहां एक विशाल मैदान बन गया जिस पर नैनीताल शहर विकसित हुआ। नैनी झील के निकट नैनादेवी का पावन मंदिर है। एक बार के भू-स्खलन में यह नष्ट हो गया था और इसका पुनर्निर्माण किया गया। मल्ली ताल और तल्ली ताला दोनों छोरों की दूरी पार करने के लिए नौकाओं द्वारा आना-जाना तो सम्भव हो ही जाता है साथ ही नैनी में विहार करने का रोमांचक अनुभव भी प्राप्त होता है। नैनी झील में पालदार नावें बहुत ही आकर्षक लगती है। नैनीताल की यात्रा का प्रमुख आकर्षण नैनी झील ही है।

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