जुर्म का प्लेटफार्म बनती राजनीति

(Tariq Ansari) : आज कल अपने देश की राजनीति का रूख बदला-बदला दिखाई पड़ रहा है। जहां कल राजनीति का खेल जुर्म रोकने के लिए खेला जाता था आज वहीं, राजनीति लोगों को जुर्म का प्लेटफार्म प्रदान कर रही है। राजनीति में आई इस तब्दीली का दोष हम न तो किसी पार्टी को दे सकते हैं और न किसी नेता के ऊपर उंगली उठा सकते हैं। एक जमाना होता था जब अच्छे व्यक्तित्व वाले लोग राजनीति में उतरते थे और समाज को अपराधिक तत्वों से बचाकर सुरक्षा प्रदान करते थे, लोगों के दिलों में एक दूसरे के मजहब के लिए सम्मान पैदा करते थे, ताकि लोगों के दिलों में एक दूसरे के धर्म के प्रति कोई भेदभाव न हो। लेकिन आज कि राजनीति पुरानी राजनीति से बिल्कुल विपरीत नजर आती है। आजकल कि राजनीति में राजनेता ऐसी-ऐसी हरकत करने लगे हैं जिसका हम तुम तो अंदाजा भी नहीं लगा सकते। अब अयोध्या को ही ले लीजिये इलेक्शन में हर बार अयोध्या का मुद्दा उठाया जाता है जिसके चलते न जाने कितने स्थानों पे मजहब कि आग भड़कती है, और उसी आग में न जाने कितने निर्दोषों की अर्थी भी जल जाती है। ये इलेक्शन कि आग तो ठण्डी हो जाती है, लेकिन उन निर्दोषों का क्या जो लोग इलेक्शन कि बलि चढ़ जाते हैं, उसमें बच्चे, बूढ़े, जवान सभी शामिल होते हैं, किसी की गोद उजड़ती है किसी की मांग का सिन्दूर।
राजनीति अब एक धंधा बनकर रह गयी है। जिधर नेताओं को फायदा नजर आता है उधर भागते दिखाई देते हैं। हमारे देश में कई ऐसे नेता भी मौजूद हैं जो किसी न किसी कांड के मुख्य आरोपी हैं। कई बार वे नेता जेल के मजे भी चख चुके हैं। इन सब के बावजूद उन नेताओं के ऊपर कोई फर्क ही नहीं पड़ता कुर्सी पर आराम से कमर लगाकर बैठते हैं। आजकल के नेता राजनीति में आकर शायद ये समझते हैं कि उन्हें जुर्म करने का प्लेटफार्म मिल गया हो। इसके मुख्य उदाहरण भी बहुत हैं लेकिन मैं यहां बयां नहीं करना चाहता। आज नेता लोग अपनी कुसी के चक्कर में न तो समाज का फायदा सोचते हैं और न देश का।
जरा गौर कीजिए कि वह लोग समाज को अपराधों से कैसे रोक सकते हैं जो खुद किसी न किसी अपराध के मुख्य आरोपी हो। ये बात सही है कि जेल जाना तो नेताओं की फितरत में पहले से ही लिखा है लेकिन आज और कल में फर्क सिर्फ इतना है कि ‘कल के नेता जनता के हित में जेल जाते थे, और आज के नेता जनता को लूटने खसोटने और दंगे करवाने के जुर्म में जाते हैं।’
आज राजनीति की छवि इतनी गंदी हो गई है कि आज इज्जतदार व्यक्ति राजनीति के नाम से भी खामोश हो जाता है। राजनीति में उतरने की बात तो अलग है आज इज्जतदार व्यक्ति वोट डालने तक नहीं जाता, और उसका वोट कोई और डाल देता है। राजनीति में परिवर्तन की शायद यह भी एक वजह हो सकती है। जनता भी क्या करे जब हर बार नजरों के सामने नए चेहरे देखने को मिलते हैं जनता ये तय नहीं कर पाती कि अपना मतदान किसे दिया जाये अगर हमने जल्द ही आंखों नहीं खोली तो राजनेता मिलकर इस देश को दीमक की तरह खा जायेंगे। अब देखना यह है कि आखिर राजनीति कब तक माफियाओं का अड्उा बनती रहेगी और नेताओं को जुर्म करने का एक सुरक्षित प्लेटफार्म प्रदान कराती रहेगी। अगर ये अपराधी शख्सियत वाले लोग बार-बार आते रहें तो देश को अपराधों से कौन बचायेगा, लोगों को सुकून कौन दिलाएगा। इसलिये हमें समझ से काम लेना चाहिए और ऐसे लोगों की मुखालफत करके अपने वोटों का सही इस्तेमाल करना चाहिये क्योंकि हमारा सही डाल गया एक-एक वोट किसी को जीता सकता है। आज कि राजनीति को देखकर मैं अपनी लिखी गई दो पंक्ति यहां व्यक्त करना चाहता हूं जो शायद आपके सामने आजकल की हकीकत को बयां कर दे।
राजनीति लोगों पे अब इल्जाम हो गई,
जनता मेरे भारत की यूं हैरान हो गई।
हर तरफ जुल्म का सा माहौल बन गया,
यूं राजनीति के चलन की पहचान हो गई।

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