सबसे कठिन है खूनी नागा साधु बनने की प्रक्रिया
नागा साधुओं की दुनिया बहुत ही रहस्यमयी होती है। इनके बारे जानने की उत्सुकता सभी लोगों के मन में हमेशा होती है। ये सवाल तो हर किसी के मन में होता है की आखिर नागा साधु कैसे बनते हैं उनका जीवन कैसा होता है। यही सवाल सभी के मन में जिज्ञासा पैदा करते हैं। तो आपको बता दें की नागा साधु दो प्रकार के होते हैंए एक साधू बर्फानी नागा साधु कहलाते हैं और एक साधु खूनी नागा साधु होते हैं। दोनों में ही बहुत अंतर होता है। चाहे इनकी दिक्षा की बात हो या फिर इनकी अग्निपरीक्षा की बात हो। आइए जानते हैं नागा साधुओं से जुड़ी कुछ खास बातें…
यहां होती है नागा साधुओं की दीक्षा
परंपरा अनुसार नागा साधुओं को अखाड़े में शामिल करने के पहले दिक्षा दि जाती है और दिक्षा सिर्फ हरिद्वार और उज्जैन में आयोजित होने वाले कुंभ में ही होती है। लेकिन किसकी दिक्षा उज्जैन में होगी और किसकी हरिद्वार में यह तो अखाड़ा ही सुनिश्चित करता है। अखाड़ा अपने स्तर से जांच करता है जिसके अनुसार यह तय किया जाता है की व्यक्ति की हरिद्वार में दीक्षा होगी या उज्जैन में, प्रक्रिया अनुसार हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले साधुओं को बर्फानी नागा साधु कहा जाता है और उज्जैन में दीक्षा लेने वाले साधुओं को खूनी साधु कहा जाता है। खूनी नागा साधु अपने साथ अस्त्र व शस्त्र लिए होते हैं। वे साधु सैनिक की तरह धर्म की रक्षा करता है और जरुरत पड़ने पर धर्म की रक्षा के लिए खून भी बहा सकते हैं।
अखाड़ों में बनाए जाते हैं 5 गुरु
दीक्षा के साथ ही अखाड़ों के भीतर उनके 5 गुरु बनाए जाते हैं। उनको भस्मए भगवा और रुद्राक्ष जैसी 5 चीजें धारण करने को दी जाती हैं। उन्हें संन्यासी के तौर पर जीवनयापन करने की शपथ दिलाई जाती है। ब्रह्मचर्य की परीक्षा के साथ ही व्यक्ति का मुंडन कराना होता है। और उसे 108 बार क्षिप्रा नदी में डुबकी लगानी होती है। इसके बाद खूनी नागा साधु बनने की प्रक्रिया में उन्हें रातभर ओम नमरू शिवाय का जप करना होता है। जप के बाद अखाड़े के महामंडलेश्वर विजया हवन करवाते हैं और जप के बाद दोबारा उन्हें क्षिप्रा नदी में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं। स्नान के बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे उससे दंडी त्याग करवाया जाता है। इस प्रक्रिया में वह नागा साधु बन जाते हैं।