पश्चिम बंगाल चुनावः वामदल और कांग्रेस मिलकर लड़ेगी चुनाव

पश्चिम बंगाल में इस साल विधानसभा के चुनाव होने है। माना जा रहा है कि इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बीच है। हालांकि लेफ्ट और कांग्रेस के बीच गठबंधन की मुहर के बाद यह चुनाव और भी दिलचस्प हो सकता है। लेकिन यह सवाल अब तक बना हुआ था कि कांग्रेस और वामदल कितने सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। यह तस्वीर अभी भी साफ नहीं हो पाई है। लेकिन बंटवारे को लेकर आपसी सहमति जरूर बन गई है। दोनों ही दल इस बात को लेकर राजी हो गए हैं कि पिछले चुनाव में जो जहां पर जीता था वह सीट उसी दल के पास रहेगी। ऐसे में इस बात की उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में वाम दलों और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर भी मुहर लग सकती है।

कांग्रेस और वाम दलों ने सोमवार को फैसला किया कि पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव में वे 2016 के चुनाव में जीती हुयी सीटों को अपने-अपने पास रखेंगे। वाम-कांग्रेस गठबंधन ने 2016 में 77 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसमें से कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप भट्टाचार्य ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हमने फैसला किया कि हम 44 और 33 सीटें अपने-अपने पास रखेंगे जिसपर कांग्रेस और वाम दल को जीत मिली थी। बाकी की 217 सीटों को लेकर चर्चा चल रही है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि इस महीने के अंत तक सीट बंटवारा समझौते का काम पूरा हो जाएगा। पश्चिम बंगाल वाम मोर्चा के अध्यक्ष और माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य बिमान बोस ने कहा कि संयुक्त प्रचार अभियान पर भी चर्चा हुई। जिस बैठक में यह फैसला हुआ उसमें बोस भी मौजूद थे। पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधानसभा के लिए इस साल अप्रैल-मई में चुनाव होने की संभावना है। सूत्र बता रहे हैं कि बची हुई सीटों को लेकर अभी भी इस गठबंधन में पेच फंस रहे है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी अपने संसदीय क्षेत्र मुर्शिदाबाद की सभी विधानसभा सीटें कांग्रेस के लिए चाह रहे हैं। लेकिन वामदल यह मानने को तैयार नहीं है। पिछले चुनाव में वाम दल यहां से 4 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। इसके अलावा कांग्रेस और वाम दलों के गठबंधन में इस बात पर भी चर्चा की गई है कि जिन सीटों पर दोनों ही दलों में से जो दूसरे नंबर पर रहा है, उस सीट पर वह दावा कर सकता है। आपको बता दें कि पिछले चुनाव में ऐसी कई सीटें थी जहां कांग्रेस और वाम दलों ने गठबंधन के बावजूद अपने-अपने उम्मीदवार उतारे थे। लेफ्ट और कांग्रेस के इस गठबंधन द्वारा अब वहां की क्षेत्रीय दलों को भी शामिल करने की कोशिश की जा रही है।

वाम और कांग्रेस गठबंधन फिलहाल फुर्फूरा शरीफ दरगाह से जुड़े पीरजादा की पार्टी इंडियन सेक्यूलर फ्रंट पर नजर जमाए हुए है। हाल में ही पीरजादा अब्बास सिद्धकी ने इंडियन सेक्यूलर फ्रंट बनाया था और ममता बनर्जी को चुनौती दी थी। हालांकि माना जा रहा है कि अब्बास सिद्धकी असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन में जा सकते हैं। लेकिन अब्बास सिद्धकी पर कांग्रेस और वाम दल अभी भी उम्मीद लगाए है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की आबादी 31 फ़ीसदी के आसपास है। ऐसे में ममता बनर्जी को चुनावी दंगल में मात देना है तो इस आबादी को अपने पक्ष में रखना बेहद जरूरी होगा।

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