बंगाल में अग्निपरीक्षा: भाजपा के सामने लोकसभा की जीत दोहराने की चुनौती

बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों पर देश की निगाहें हैं। राज्य में तीन दौर की वोटिंग हो चुकी है व पांच चरण बाकी हैं। इन चुनावों में भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव में किए गए प्रदर्शन को बनाए रखने की कठिन चुनौती है। पिछले कई वर्षों में भाजपा लोकसभा चुनाव में हासिल मत प्रतिशत को बाद में हुए विधानसभा चुनावों में बनाए रखने में विफल रही है। इस मामले में सिर्फ असम व त्रिपुरा अपवाद रहे हैं।

राज्यवार आंकड़े बताते हैं कि बीते सात साल में जहां पार्टी ने लोकसभा चुनावों में आधार बढ़ाया है, वहीं विधानसभा चुनावों में स्थिति ठीक नहीं है। असम व त्रिपुरा को छोड़कर पार्टी अपने प्रभाव वाले एक भी राज्य में लोकसभा चुनाव में हासिल मत प्रतिशत को बरकरार नहीं रख पाई है। साल 2014 के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को छह फीसदी ज्यादा वोट मिले। इसके उलट, विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनाव के मुकाबले एक से 19 फीसदी मतों तक का नुकसान उठाना पड़ा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से तुलना करें तो यूपी में भाजपा को एक फीसदी, छत्तीसगढ़ में 10, राजस्थान में 17, मध्यप्रदेश में 13, उत्तराखंड में नौ, हिमाचल प्रदेश में पांच, दिल्ली में 14, गुजरात में 10 और कर्नाटक में सात फीसदी मतों का नुकसान झेलना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी पार्टी हासिल मत को बरकरार नहीं रख पाई। इस दौरान महाराष्ट्र में एक फीसदी, हरियाणा में 17, झारखंड में 19 और बिहार में चार फीसदी से अधिक मतों का पार्टी को नुकसान झेलना पड़ा।

पार्टी के प्रभाव वाले राज्यों में बस असम और त्रिपुरा ही अपवाद हैं। इन्हीं दो राज्यों में पार्टी को लोकसभा चुनाव के मुकाबले अधिक मत हासिल हुए। त्रिपुरा में साल 2014 के चुनाव में पार्टी को छह फीसदी से भी कम वोट मिले थे। हालांकि विधानसभा चुनाव में पार्टी को करीब 44 फीसदी मत मिले। इसके अलावा असम में साल 2014 के चुनाव में पार्टी को 36.50 प्रतिशत मत मिले थे। इसके दो साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को लोकसभा चुनाव के मुकाबले पांच फीसदी अधिक मत मिले। अब पश्चिम बंगाल में पार्टी की अग्निपरीक्षा है। देखना दिलचस्प होगा कि इस राज्य में पार्टी वोट प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब रहती है या फिर वोट प्रतिशत में कमी आती है। जाहिर तौर पर भाजपा का वोट फीसदी बढ़ने का मतलब टीएमसी की सत्ता से विदाई है, जबकि कमी होने पर राज्य में सत्ता के लिए उसका इंतजार बढ़ जाएगा। सिर्फ लोकसभा चुनावों की तुलना करें तो 2014 के मुकाबले 2019 में पार्टी के वोट बैंक में 23 फीसदी का उछाल आया है। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी को 2016 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले तीस फीसदी अधिक वोट मिले हैं।

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