उत्तराखण्डः क्या तय हुई तीरथ की विदाई, शाह.नड्डा से मुलाकात का क्या निकला अर्थ?

नई दिल्ली/देहरादून: बड़ी खबर है कि उत्तराखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री बदला जा सकता है. त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह इसी साल मार्च में तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया था. अब जबकि राज्य में विधानसभा चुनाव होने में एक साल का वक्त भी नहीं रह गया है, भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर सीएम बदलने के मूड में दिख रही है. वास्तव में, भाजपा आलाकमान द्वारा अचानक दिल्ली तलब किए जाने के बाद बुधवार को आधी रात के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की मुलाकात गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ हुई थी, लेकिन इसके बाद से सस्पेंस और अटकलों का दौर जारी है क्योंकि तीरथ रावत को गुरुवार शाम तक उत्तराखंड लौटना था, मगर अचानक उनकी वापसी रद्द हो गई.

मीडिया में कई खबरों के बीच बड़ी संभावना यह जताई जा रही है कि उत्तराखंड में चुनावों के मद्देनज़र एक बार फिर नेतृत्व बदला जा सकता है. हालांकि भाजपा ने संभावना पर फिलहाल कुछ न कहते हुए यही स्टैंड लिया है कि किसी मुख्यमंत्री का शीर्ष नेताओं से मिलना रूटीन का हिस्सा होता है. इसके बावजूद सूत्रों के हवाले से यह खबर आग की तरह फैल रही है कि तीरथ सिंह रावत सीएम के पद पर कुछ ही दिनों के मेहमान और हैं. इस खबर के तमाम पहलुओं को समझिए. तीरथ सिंह रावत ने बुधवार व गुरुवार की दरम्यानी रात पार्टी के आलाकमान से मुलाकात की, तो त्वरित खबरें यही आईं कि उपचुनाव को लेकर बातचीत हुई. लेकिन ताज़ा खबरें कह रही हैं कि पार्टी उपचुनाव के पक्ष में नहीं दिख रही है. टीओआई की खबर कह रही है कि रावत ने अपने संसदीय क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल से ही चुनाव लड़ने का मन बताया है और इस सीट के खाली करवाए जाने का रास्ता भी, लेकिन सूत्रों के ज़रिये खबर कहती है कि पार्टी ने उपचुनाव का फैसला किया तो अन्य राज्यों में भी खाली सीटों पर उपचुनाव करवाने पड़ेंगे. इसलिए पार्टी उपचुनाव नहीं बल्कि अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव पर फोकस कर रही है.

क्या तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व में होगा चुनाव?
नहीं! सूत्रों के हवाले से एक अन्य खबर में कहा गया है कि बीजेपी आलाकमान तीरथ सिंह रावत और उत्तराखंड विधायकों के बीच मतभेद हैं. यहां तक कहा गया है कि एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने तो विधायकों का पूरा साथ होने तक का दावा कर दिया है. इन मतभेदों को हवा देने का पार्टी का मन नहीं है और पार्टी 2012 वाली ही रणनीति अपनाकर चुनाव से कुछ ही महीने पहले फिर मुख्यमंत्री बदलने के मूड में आ गई है. हालांकि ये सभी खबरें सूत्रों के हवाले से हैं, लेकिन राज्य के समीकरण भी फिलहाल इनके समर्थन में इशारे दे रहे हैं. देखिए कैसे.

क्या हैं राज्य में सियासी सरगर्मियां?
तीरथ के दिल्ली जाने की खबरें तो मीडिया में चलती रहीं, लेकिन एक खबर जो चर्चा में नहीं आई कि 27 से 29 जून तक भाजपा ने उत्तराखंड चुनावों को लेकर जो चिंतन शिविर किया, उसके बाद राज्य के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज कुछ और विधायकों के साथ दिल्ली पहुंच गए. इधर, टीओआई ने यह भी लिखा कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते बुधवार को ही जूना अखाड़ा के महंत अवधेशानंद गिरि से ​हरिद्वार में मुलाकात की. बताया जा रहा है कि त्रिवेंद्र अपने पक्ष में संत समुदाय का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरी तरफ, त्रिवेंद्र सिंह रावत की सक्रियता को लेकर एक अन्य खबर कह रही है कि कुमाऊं दौरे से लौटने पर देहरादून में उनके स्वागत की तैयारियों को लेकर चर्चाएं ज़ोरों पर हैं. इधर, राज्य सरकार के प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने यही कहा कि दिल्ली दौरे पर मुख्यमंत्री तीरथ के साथ आलाकमान ने 2022 के विधानसभा चुनावों को लेकर ही चर्चा की है.

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