Breaking News: मोदी मंत्रिमण्डल विस्तार में यूपी के पिछड़ों, दलितोें को लुभाने की कोशिश

लखनऊ: केंद्र की मोदी सरकार के मंत्रिमण्डल विस्तार में उत्तर प्रदेश से 7 सांसदों को जगह मिलने जा रही है. इन 7 में से सिर्फ एक सामान्य वर्ग से हैं. तीन-तीन मंत्री पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय से हैं. जाहिर है यूपी से बनाये जा रहे मंत्रियों को 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नजरिये से चुना गया है. भाजपा जानती है कि पिछड़ों और दलितों को नज़रअंदाज करके न तो लोकसभा का चुनाव जीता जा सकता है और न ही विधानसभा का चुनाव. 2017 का विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव इसी सोशल इंजीनियरिंग के जरिये तो पार्टी ने फतह किया था.

2019 में मोदी सरकार दोबोरा सत्ता में आयी थी, तब यूपी के दो पिछड़े नेताओं को मंत्री बनाया गया था. बरेली से सांसद संतोष गंगवार और फतेहपुर से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति. गंगवार को अब मंत्रिमण्डल से हटा दिया गया है लेकिन, उनकी जगह की भरपाई तीन-तीन पिछड़े नेताओं को शामिल करके की गई है. मंत्री बनने जा रहे महाराजगंज से सांसद पंकज चौधरी, राज्यसभा से सांसद बीएल वर्मा और मिर्जापुर से अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल पिछड़े समुदाय से हैं. इस तरह यूपी से अब कुल 4 मंत्री मोदी कैबिनेट में हो जायेंगे जो पिछड़ी जाति से हैं. पटेल, कुर्मी और लोधी समाज का कॉकटेल बनाने की कोशिश साफ दिखायी दे रही है. मोदी 2.0 मंत्रिमण्डल में अभी तक यूपी के किसी भी दलित सांसद को मंत्री नहीं बनाया गया था. यूपी चुनाव से ऐन पहले इस समुदाय को बड़ी हिस्सेदारी दी गयी है. पिछड़े समुदाय की ही तरह इस बात दलित समुदाय से भी तीन-तीन मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया जा रहा है. आगरा से एसपी सिंह बघेल, जालौन से भानु प्रताप सिंह वर्मा और लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से कौशल किशोर तीनों दलित समुदाय से हैं. वहीं ब्राह्मणों की तथाकथित नाराजगी को पाटने के लिए भाजपा ने एक और ब्राह्मण चेहरे को मंत्री पद दिया है. चंदौली सांसद महेन्द्रनाथ पांडेय के साथ अब लखीमपुर खीरी सांसद अजय मिश्रा भी मंत्री होंगे.

अब वोट बैंक का गणित समझिये कि भाजपा ने आखिरकार पिछड़ों और दलितों को इतने मंत्री पद क्यों दिये? यूपी में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ों का है. 39 फीसदी यहां हैं. इसके अलावा 25 फीसदी दलित वोट बैंक है. ये सही है कि इसका एक बड़ा हिस्सा अखिलेश यादव और मायावती के साथ रहता है लेकिन भाजपा को तो इसी में सेंधमारी करके वीनिंग फैक्टर बनाना है. उसे भरोसा है कि उसका पारम्परिक सवर्ण वोट कहीं नहीं जा रहा. ऐसे में पिछड़ों और दलितों का एक हिस्सा भी उसे मिल जाये तो सीटें आसानी से जीती जा सकेंगी. इसी सोच के साथ पार्टी ने 2017 के चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर पिछड़ों और दलित नेताओं को साधा था. या तो पार्टी के भीतर के नेताओं को भाजपा आलाकमान ने बड़ा ओहदा दिया था या फिर दूसरी पार्टी के पिछड़े और दलित नेताओं को तोड़कर उन्हें बड़ा किया था. हर सीट पर महज कुछ हजार वोट वाली पिछड़ी जातियां किसी भी बड़ी पार्टी के कैण्डिडेट को जिता देती हैं. इसीलिए अखिलेश यादव भी इन पर डोरे डाल रहे हैं और कहते रहे हैं कि वे छोटे दलों से गठबंधन करेंगे. असल में वे भी इसी फिराक में लगे हैं, जिस पर भाजपा आगे बढ़ रही है.

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