श‍िवल‍िंग के पहले प्रकार को उत्तम शिवलिंग कहते हैं

आज सावन का दूसरा सोमवार है. कृतिका नक्षत्र लगने के कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है. भक्त आज भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए पूजा अर्चना कर रहे हैं. साथ ही माता पार्वती की पूजा भी विशेष फलदायी रहेगी. इस पावन अवसर पर आइए जानते हैं क‍ि आखिर क‍ितने प्रकार के श‍िवल‍िंग होते हैं और इनकी पूजा का क्‍या व‍िधान है? महादेव ही एक मात्र ऐसे देव हैं जिनकी पूजा मूर्त रूप की बजाय लिंग रूप में अधिक फलदायी मानी जाती है. यही कारण है कि मंदिरों में भगवान शिव लिंग रूप में व‍िराजते हैं.

श‍िवल‍िंग के पहले प्रकार को उत्तम शिवलिंग कहते हैं
भोलेनाथ को खुश करने के लिए भक्त उनके लिंग रूप की पूजा करते हैं. शिव पुराण में शिवलिंग तीन प्रकार के बताए गए हैं. इन्‍हें उत्तम, मध्यम और अधम कहा गया है. श‍िवल‍िंग के पहले प्रकार को उत्तम शिवलिंग कहते हैं. उत्‍तम श‍िवलिंग उसे कहते हैं जिसके नीचे वेदी बना हो और वह वेदी से चार अंगुल ऊंचा हो. इसे ही सबसे अच्छा यानी क‍ि उत्‍तम शिवलिंग माना गया है. दूसरे प्रकार के श‍िवल‍िंग को मध्यम और तीसरे प्रकार के श‍िवल‍िंग को अधम श्रेणी का श‍िवलिंग कहा गया है. जो शिवलिंग वेदी से चार अंगुल से कम होता है वह मध्यम माना गया है. वहीं जो इससे भी कम हो वह अधम श्रेणी का माना गया है. श‍िव पुराण के अनुसार शिवलिंग की पूजा करते समय मुख सदैव उत्तर की ओर रखना चाहिए क्‍योंक‍ि पूर्व दिशा की ओर खडे़ होकर या बैठकर शिवलिंग की पूजा करने से शिव के सामने का भाग बाधित होता है जो शुभफलदायी नहीं होता है. कहा जाता है क‍ि उत्तर की ओर बैठकर या खडे़ होकर पूजा करने से देवी पार्वती का अपमान होता है क्योंकि यह शिव का बायां भाग पड़ता है जहां देवी पार्वती का स्थान है. इसलिए दक्षिण दिशा में बैठकर सामने की ओर यानी उत्तर की ओर मुख करके शिवलिंग की पूजन करनी चाह‍िए. ऐसा करने से भक्त को माता पार्वती और भोलेनाथ की कृपा म‍िलती है.

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