Big Breaking: चीन-रूस का समर्थन लेकिन पश्चिमी देशों के निशाने पर है तालिबान

नई दिल्ली: अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के मामले में अमेरिका वैश्विक आलोचनाओं के घेरे में है. हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडन साफ कर चुके हैं कि वो अपने फैसले पर अडिग हैं. इस बीच जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों ने भी घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया दी है. उधर, चीन और रूस तालिबान के साथ अपने बेहतर संबंध स्थापित करने में लगे हैं. जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा है कि तालिबान की सत्ता में वापसी ‘बेहद भयावह और नाटकीय’ है. मर्केल ने कहा है, ‘ये लाखों अफगानियों के लिए बेहद भयावह स्थिति है. इन लोगों ने पश्चिमी समुदाय की मदद से एक मुक्त समाज बनाने के लिए बहुत मेहनत की है. लोकतंत्र को मजबूत करने, शिक्षा और महिलाओं की स्थिति पर जोर दिया.’

वहीं यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने जी7 समूह की एक वर्चुअल बैठक कर तालिबान के खिलाफ सामूहिक एकजुटता की अपील की है. इससे पहले शुक्रवार को भी बोरिस जॉनसन ने कहा था कि वो और उनके सहयोगी अफगानिस्तान को एक बार फिर आतंकवाद की जमीन नहीं बनने देंगे. फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि अफगानिस्तान को किसी भी कीमत पर आतंक की नर्सरी नहीं बनने दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि ये अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए खतरा है. अगर पूरी दुनिया में शांति चाहिए तो हमें इसके खिलाफ खड़ा होना होगा. मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से भी इस मामले में कदम उठाने की अपील की है. चीन-पाकिस्तान तालिबान के शासन का खुला समर्थन कर रहे हैं. अब इस लिस्ट में रूस का नाम भी जुड़ गया है. अफगानिस्तान में रूस के राजदूत ने दावा किया है कि तालिबान ने पहले की अपेक्षा काबुल को ज्यादा सुरक्षित कर दिया है. बता दें कि रूस के खिलाफ ही तालिबान अस्तित्व में आया था.

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