यक्ष प्रश्नः उत्तराखंड में 26 करोड़ के इन्वेस्टर्स समिट के बावजूद बंद हुईं 165 इकाइयां

देहरादून: उत्तराखंंड में औद्योगिक विकास के भले कितने ही दावे किए जा रहे हों, लेकिन हकीकत तो ये कि उद्योगों की गाड़ी हिचकोले खा रही है. हालात ये है कि खुले हाथ से छूट देने के बावजूद उत्तराखंड में बीते सालों में 165 औधोगिक इकाइयां बंद हो गई हैं. औद्योगिक विकास के लिए उत्तराखंड में राज्य अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास निगम सिडकुल स्थापित है. सिडकुल के तहत हरिद्वार, पंतनगर, सेलाकुई, कोटद्वार, देहरादून और काशीपुर में इंडस्ट्रियल एरिया विकसित किए गए हैं. लघु औद्योगिक क्षेत्र भी सिडकुल में मर्ज कर दिए गए. सरकार इनवेस्टर्स को आकर्षित करने के लिए सस्ती दरों पर जमीन से लेकर कई प्रकार की रियायत इंडस्‍ट्री को दे रही है, लेकिन अधिकांश इंडस्ट्रीज जमीन कब्जाने तक सीमित हो गई हैं. टिहरी से बीजेपी विधायक धन सिंह नेगी ने विधानसभा के मॉनसून सेशन में जब औद्योगिक इकाइयों का मामला उठाया, तो पता लगा कि राज्य में 165 इंडस्ट्रीज ऐसी हैं, जो बंद पड़ी हैं, लेकिन वो जमीन कब्जा के बैठी हैं.

प्रोत्साहन देने के रुप में 190 करोड़ रुपए भी खर्च कर चुकी है
साल 2019 में सरकार ने इन्वेस्टर समिट आयोजित किया था. तब दावा किया गया कि समिट में एक लाख 24 हजार करोड़ के एमओयू साइन किए गए. इनवेस्टर को लुभाने के लिए सरकार ने दिल खोलकर खर्चा भी किया. सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, इस समिटि के आयोजन पर 26 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए. लेकिन नतीजा कुछ खास हासिल नहीं हो पाया. उसके तहत अभी तक मात्र 233 यूनिट ने ही काम करना शुरू किया है. करीब 300 इकाइयों की स्थापना का काम अभी पाइप लाइन में है. गौर करने लायक बात ये भी है कि सरकार इन इंडस्ट्रियों को विभिन्न योजनाओं में प्रोत्साहन देने के रुप में 190 करोड़ रुपए भी खर्च कर चुकी है.

नीति के तहत नोटिस सर्व कर दिए गए हैं
बीजेपी विधायक खजानदास इस प्रोग्रेस से संतुष्ट नहीं हैं. खजानदास ने विधानसभा के मॉनसून सेशन में उधोग मंत्री से पूछा कि आखिर एमएसमएई के तहत राज्य में उधोगों के क्या हालात हैं. कितने उधोग बीते सालों में बंद हुए हैं. जानकारी मिली कि सरकार के पास इसका रिकॉर्ड ही नहीं है. बंद पड़ी यूनिटस को सरकार ने नोटिस सर्व किया. उधोग मंत्री गणेश जोशी का कहना है कि बंद इकाइयों को संचालित कराए जाने के के संबंध में पूर्व में लीज डीड में कोई प्रावधान नहीं था. इसके चलते बंद पड़ी इकाइयों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती थी. इसको देखते हुए पिछले साल जनवरी में क्लोजर नीति बना दी. इसके तहत बंद इकाइयों को नोटिस देकर छह महीने के भीतर उत्पादन शुरू करने का मौका दिया जाएगा. यदि इकाई निर्धारत समय में चालू नहीं हो पाई तो भू-खंड का आवंटन निरस्त कर दिया जाएगा. उधोग मंत्री का कहना है कि बंद पड़ी सभी 165 इकाइयों को क्लोजर नीति के तहत नोटिस सर्व कर दिए गए हैं.

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