अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास

भारत देश एक पूण्यभूमि हैं, यहाँ ऐसे कई तीर्थ स्थान है जहा हर धर्म के लोग आस्था के साथ जाते है ऐसा ही एक तीर्थ स्थान है अजमेर शरीफ़ दरगाह कहा जाता है अजमेर शरीफ़ दरगाह की  में आप जो भी मन्नत मागते हो वो पूरी हो जाती है। यह दरगाह ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का दरगाह है। मोईनुद्दीन चिश्ती गरीब नवाज – Khwaja Garib Nawaz के नाम से जाने जाते है। वे एक इमाम थे जो दक्षिण एशिया के इस्लामिक विद्वान् और दार्शनिक रहे। भारतीय उपमहाद्वीप में उन्होंने सूफियो को चिश्ती आदेश के परिचय व स्थापना में अपना जीवन व्यतीत किया। प्रारंभिक आध्यात्मिक कड़ी अथवा भारत में चिश्ती सिलसिला को समाविष्ट करने में क़ुत्बुद्दीन बख्तियार काकी, फरीदुद्दीन गंज्शाकर, निज़ामुद्दीन औलिया ये सभी पहले सफलतम अनुयाइयो में शामिल है। ये भारतीय इतिहास के महान सूफी संतो में से एक है बहुत से मुग़ल बादशाह भी चिश्ती को मानते थे।

मुईनुद्दीन चिश्ती की निजी जिन्दगी –

कहा जाता है की चिश्ती का जन्म 1141 सी. ई. में अफगानिस्तान और ईरान के बीच में चिश्ती शहर में हुआ था। उनके माता और पिता का देहांत हो गया जब वे सिर्फ 15 वर्ष के थे। मोहम्मद सैय्यद के वंशज को विरासत में फलो का बगीचा और पवन चक्की मिली थी। अपने बचपन में चिश्ती अन्य बच्चो से अलग थे। वे फकीरों की संगत प्रार्थना और ध्यान में अपने आप को व्यस्त रखते थे। उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति बेच दी व उससे प्राप्त धन गरीबो में बाट दिया सब कुछ त्याग कर वे बुखारा गए व उच्च ज्ञान प्राप्त किया। उस्मान हरूनी के मोईनुद्दीन चिश्ती मुरीद बन गए।

Khwaja Garib Nawaz की यात्रा-

चिश्ती समरकंद, बूखारा गए गुरु के साथ रह कर धर्म की शिक्षा ली। मुस्लिम रीती-रिवाज व धर्म के बारे में जानकारी हासिल की। वे उस्मान हरूनी के अनुयायी बन गए मध्य पूर्व में मक्का मदीना तक चिश्ती गए।

भारत की यात्रा –

इसके बाद चिश्ती भारत आ गए उनका सपना था कि वे मुहम्मद से आशीर्वाद प्राप्त करे। काफी समय लाहौर रहने के बाद मुइज्ज़ अल- दिन मुहम्मद के साथ अजमेर आए और वही बस गए। यहा की वास्तविकता से आकर्षित हुए व सम्मान प्राप्त किया। मुस्लिम और गैर मुस्लिमो के बीच पुल का काम किया।

दक्षिणी एशिया में चिश्तिया सिलसिले की नीव रखी-

चिश्ती आदेश की स्थापना अबुइशक़ शमी ने 95 मिल पूर्वी हेरात में जो की वर्तमान में पश्चिमी अफगानिस्तान में है। चिश्तियो आदेश भारत में राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है। उनके आदेश भारत में उनकी शिक्षण आदेश से प्रेरित एवं आधारित है, तनाव वाली परिस्थितियों में खुश रहना सख्त शासन प्रणाली में भी अपने अनुशासन अपनी प्रार्थना में व्यस्त रहना, धार्मिक सदभावनाओ का आदान-प्रदान करना, जो भी उनके मुरीद थे। उन्हें हर उपदा से बचाया, स्थानीय लोगो का दिल जित लिया और उन्हें अपना मुरीद बनाया।

उन्होंने एक अलग दुनिया का निर्माण किया। उनकी धर्म की दुसरे शब्दों में व्याख्या ऐसी थी की मनुष्य एक शिष्य है, जो अपने आप में नदी जैसी उदारता और सूर्य जैसा स्नेह होना चाहिए। उनके अनुसार भक्ति में सबसे ज्यादा शक्ति है, जो दु:ख में है उनकी सहायता करनी चाहिए, भूखो की भूख मिटाना चाहिए। अकबर के काल (1556 – 1605) में अजमेर भारत का एक मुख्य तीर्थ था। फिर मुगल सम्राट ने भी अजमेर में दिलचस्पी ली जब उन्होंने धार्मिक गाने सुने जिससे उनकी रातो की नींद उड़ गई। मोईनुद्दीन चिश्ती ने अंस अल- अरवा और दलील अल- अरिफिन ये दो पुस्तक भी लिखी जिसमें इस्लामिक तौर तरीको से जीवन जीना बताया था। क़ुतुबुद्दीन बख्तियार काकी और हमीदुद्दीन नागोरी जिन्होंने चिश्ती की जित मनाई थी उन्होने गुरु के रूप में सभी शिष्यों को शीक्षा दी। क़ुत्बुद्दीन बख्तियार काकी के उत्कृष्ठ शिष्यों में से एक फरीदुद्दीन गंजहाकर थे। इनकी दरगाह अभी पाकिस्तान में है। फरीदुद्दीन के उत्कृष्ठ शिष्य निज़ामुद्दीन औलिया थे और उनकी दरगाह दक्षिण दिल्ली में है। इनके एक और शिष्य की दरगाह कल्यर शरीफ में है। सबरी सिलसिला भारत और पाकिस्तान में खूब फैला था जिसके कारण इनके भक्तो ने अपने नाम के सामने सबरी लगा लिया था। दिल्ली से उनके शिष्य बाहर आए और सब ने अपनी अपनी दरगाह बनाई दक्षिण एशिया में सिंध पश्चिम में से पूरब बंगाल तक और डेक्क्न पठार दक्षिण तक। चिश्ती दरगाह के सभी दरगाहों में से अजमेर की दरगाह प्रमुख है।

अजमेर शरीफ दरगाह – Ajmer Sharif Dargah

चिश्ती दरगाह अजमेर शरीफ दरगाह या अजमेर शरीफ के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दरगाह को भरात सरकार दरगाह ख्वाजा साहेब एक्ट 1955 के तहत मान्यता प्राप्त है भारत सरकार ने दरगाह के लिए समिति बनाई है जो की दरगाह में आने वाले चढ़ावे का हिसाब रखती है, दरगाह के आस-पास के क्षेत्रों का रख रखाव भी करती है। कई धर्म संस्थाए भी चलती है। जैसे की चिकित्सालय, भक्तो के लिए धर्मशाला। पर वे प्रमुख रूप दरगाह के अंदरूनी हिस्सों के देख भाल खादिम करते है।

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