मना था इन वादियों में भारतीयों का आना

आज पहाडों की रानी हिंदुस्तानियों से गुलजार रहती है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब अंग्रेजों ने भारतीय को माल रोड पर न चलने का फरमान जारी किया था। 1825 में कैप्टन यंग जो कि एक साहसिक ब्रिटिश मिलिट्री अधिकारी थे और शोर, देहरादून के निवासी और अधीक्षक द्वारा वर्तमान मसूरी की खोज की गई। तभी इस सुंदर पर्यटन स्थल की नींव पड़ी।

पूरे तीन महीने बंद रहता था मसूरी बाजार
1827 में मसूरी में एक सैनिटोरियम बनवाया गया, जो अब लंढौर में कैंटोनमेंट बन चुका है। 1901 तक मसूरी की जनसंख्या 6461 थी, जो कि ग्रीष्म ऋतु में बढ़कर 15,000 तक पहुंच जाती थी। 80 के दशक तक भी शीत ऋतु में मसूरी का बाजार पूरे तीन महीने तक बंद रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर ही कहा जा सकता है कि मौसम में आए बदलाव ने इस शहर पर भी व्यापक असर डाला है। पहले यहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग ही मुख्य जरिया था लेकिन 1900 में सड़क मार्ग छोटा होकर केवल 21 कि.मी. रह गया। यहां बहुतायत में उगने वाले एक पौधे ‘मंसूर’ के नाम पर ही इसका नाम रखा गया है।

 

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