आसमान छूती महंगाई से जनता त्रस्तः नुसरत

महंगाईए महंगाई! महंगाई! चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। भारत देश इस महंगाई की मार से बुरी तरह पीडित है। ऐसा प्रतीत होता है कि भारतवासी अपनी फूटी किस्मत पर रो रहे हैं कि हमने यहां जन्म ही क्यों लिया? क्या यह महंगाई हमारा किसी तरह पीछा नहीं छोडेगी। इस प्रश्न के हल होने का सवाल ही नहीं उठता। एक ओर तो हम प्राकृतिक आपदाओं की मार सह रहे हैं। प्रकृति भी सरकार की मित्र है उसने भी विकराल रूप धारण कर लिया है और दूसरी ओर महंगाई की सैकडों आपदाएं हमारा खून चूस रही हैं।
रोजमर्रा की जितनी भी जरूरतें है दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रही है। महंगाई चारों ओर से मुंह बाये खड़ी है। क्या-क्या गिनाएं, कभी बिजली, कभी पानी तो कभी रसोई गैस और कभी पेट्रोल-डीजल छोटी से छोटी और बडी से बडी सभी अनिवार्य वस्तुएं महंगाई से अछूती नहीं बची। यह महंगाई रूपी डायन हमें घुन की तरह अन्दर से खोखला कर रही है। एक दिन ऐसा आएगा कि एक दूसरे से बात करनी भी महंगी हो जाएगी।
हम भारतीय हैं और अतिथि सत्कार में बहुत विश्वास रखते हैं। अतिथि को घर में भगवान समझा जाता है लेकिन आज हम इतने क्रूर और निर्दयी हो गए हैं कि भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमारे घर कोई मेहमान न भेजें क्योंकि हमें उसे पानी पिलाना भी महंगा पडेगा।
मैं इन कुर्सी के ठेकेदारों से पूछता हूं कि क्या इस समस्या का कोई हल नहीं है। नेता लोग तो अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। उनको जनता के दर्द से क्या वास्ता। सरकार तो अपनी लाचारी बताकर सारे टैक्स वसूल कर लेती है। उनको क्या पता महंगाई का रोग किस प्रकार एक-एक करके परिवारों को निगल रहा है लेकिन सरकार की कुर्सी सुरक्षित है। पिस तो बेचारी जनता रही है। इस महंगाई से हम इतने लाचार हो चुके हैं कि भगवान से प्रार्थना करते हैं और दुआ मांगते हैं कि हे प्रभु! जल्दी से जल्दी हमें इस संसार से उठा ले। हम तेरी इस महंगाई से ग्रस्त भारत नगरी में और नहीं जीना चाहते। हो सके तो पुनरू इस धरती पर हमें मत भेजना हमसे यह पीडा नहीं सही जाएगी। हम तेरे कृपा के पात्र हंैए हम पर अपनी कृपा बनाए रखना।

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