पिथौरागढ़: 6 दशक के बाद चाइना बॉर्डर पर भारी बर्फबारी
पिथौरागढ़: करीब 6 दशक के बाद कड़कड़ाती ठंड में भी चीन से सटे लिपुलेख और मिलम बॉर्डर पर भारतीय जवान मजबूती से डटे हैं. भारत-चीन युद्द के बाद इस बार ये पहला मौका है, जब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर भारतीय सुरक्षा तंत्र भारी स्नो फॉल के बीच चप्पे-चप्पे पर ड्रैगन पर निगाह जमाया हुए है. बेहद मुश्किल हालात में भारतीय जवानों के हौंसलें दुश्मन को पस्त करने के लिए काफी हैं. लिपुलेख और मिलम बॉर्डर पर सर्दियों के सीजन की तो बात ही छोड़ दो, गर्मियों में यहां टिके रहना असंभव सा है. भारी बर्फबारी (Snowfall) के बीच सीना चीरती बर्फिली हवाएं किसी के भी हौंसले पस्त कर देती हैं. लेकिन भारतीय सुरक्षा जवान इस बार जाड़ों में भी इन इलाकों में मजबूती के साथ तैनात हैं.
लद्दाख की घटना के बाद सेना, आईटीबीपी और एसएसबी के जवानों ने चीन और नेपाल से लगे बॉर्डर पर हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है. बीते सालों में जाड़ों के सीजन में ये इलाके पूरी तरह खाली रहते थे. लेकिन इस बार सुरक्षा बलों की मौजूदगी से ये पूरी तरह आबाद हैं. इतने कठिन हालात में जवान कैसे रह पाते हैं. इसका जवाब देते हुए सेना के रिटायर्ड ब्रिगेडियर किशोर जोशी बताते हैं कि भारतीय सेना में जवानों को कुछ इस तरह तैयार किया जाता है कि वो रेगिस्तान की गर्मी हो या फिर लिपुलेख की ठंड दोनों हालात में आसानी से रह सकते हैं. जोशी कहते हैं कि सेना में वो ही टिक सकता है जिसमें विपरीत हालात से निपटने का जज्बा हो. जिन इलाकों में सरहद की सुरक्षा के लिए जवान हाडकपाती ठंड में भी तैनात हैं, वहां के ग्रामीण इन दिनों निचले क्षेत्रों में माइग्रेट हो जाते हैं. गुंजी,कालापानी, नाभीढांग, लिपुलेख और मिलम का ये बॉर्डर 10 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. इन इलाकों में इस बार नवंबर से ही भारी बर्फबारी जारी है. आलम ये है कि कई इलाकों में तो 15 फीट से भी अधिक बर्फ जमा हो चुकी है. बावजूद इसके रणबांकूरों के रगो में आग धधक रही है.