उत्तराखंड: 2022 में पूर्व संगठन मंत्री संजय कुमार की वापसी से चुनाव हो सकता है आसान

2017 के विधानसभा चुनाव में दिलाई थी बम्पर जीत

संजय कुमार की कार्यक्षमता का भी लोहा मानता है संगठन

2022 में पूर्व संगठन मंत्री संजय कुमार की वापसी से चुनाव हो सकता है आसान

केंद्रीय नेतृत्व ओर प्रदेश नेतृत्व को सोचना होगा भाजपा को जीत दिलाने की राह

 

देहरादून। उत्तराखंड में इनदिनों सियासी भूचाल सा आया हुआ है। महज़ कुछ महीनों के भीतर ही तीसरे मुख्यमंत्री के हाथों में प्रदेश की कमान सौंपी गई। वहीं केन्द्र में राज्य के बड़े नेता ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तो एक अन्य भाजपा नेता का कद बड़ा कर उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह दे दी गई। शीर्ष नेतृत्व द्वारा उठाये गए ये सब कदम भाजपा संगठन में संतुलन बैठाने के लिए तो ठीक हैं, किंतु इनका असर कहीं न कहीं आम जनता पर विपरीत पड़ रहा है। वहीं ऐसे में विपक्षी दलों को भी भाजपा सरकार पर उंगली उठाने और बातें बनाने का मौका मिल गया है।

राजनीतिक जानकर ये कहने लगे हैं कि भाजपा संगठन के भीतर असंतुलन पैदा हो गया है, जहां काम करने वाले और संगठन को मजबूती प्रदान करने वाले लोगों की काबिलियत को दरकिनार कर दिया जाता है तथा ऐसे लोगों को आगे कर दिया जाता है जिन्हें राजनीति का ककहरा भी ठीक से नहीं आता। वहीं संगठन की मजबूती के लिए दिन-रात पसीना बहाने वाले कर्मठ और जुझारू नेता ऐसे में खुद को ठगा सा महसूस करते हैं।

भाजपा के ऐसे ही एक वरिष्ठ नेता हैं संजय कुमार जिन्होंने अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा दल को मजबूत व एकजुट करने में गुज़ार दिया किन्तु एक निराधार आरोप के चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

यदि संजय कुमार के राजनीतिक सफर की ही बात की जाए तो बचपन से ही इनके भीतर समाज और देश की सेवा करने का जज़्बा हिलौरे मारने लगा था। इनके घर के बड़े सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे उन्हीं से प्रेरित होकर संजय कुमार भी बहुत छोटी उम्र में संघ की शाखाओं में हिस्सा लेने लगे। बड़ों के सानिध्य में धीरे-धीरे इनके हृदय में देश के प्रति प्रेम और गहराता चला गया।

इसी के चलते उन्होंने काफी वर्ष तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में रहकर अपनी सेवाएं दी। वर्ष 1992 संजय कुमार को देहरादून नगर का संघ प्रचारक बनाया गया। इस दौरान इन्होंने पूरी तन्मयता से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। इनकी कार्य शैली और मेहनत से प्रभावित होकर संघ के शीर्ष नेतृत्व ने वर्ष 1996 में इन्हें मुजफ्फरनगर नगर का जिला प्रचारक नियुक्त किया। इस पद पर रहकर इन्होंने तीन वर्षों तक अपनी सेवाएं दी। ततपश्चात इनपर भरोसा जताते हुए वर्ष 1999 में संजय कुमार को जिला हरिद्वार के संघ प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई।

इस दौरान संजय कुमार ने अपनी लगन और मेहनत से सभी को प्रभावित कर दिया। जिसके चलते वर्ष 2000 में इनका कद बढाते हुए इन्हें नैनीताल में संघ के विभाग प्रचारक के पद पर नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए संजय कुमार में 7 वर्षों तक अपनी सेवाएं दी। वहीं वर्ष 2007 में इनको उत्तराखंड का प्रचार प्रमुख बनाया गया।

अपने कार्यकाल के दौरान गाँव-गाँव जाकर उन्होंने लोगों को जोड़ा और संगठन के उद्देश्यों से आमजन को अवगत करवाया। जिससे प्रभावित होकर हाईकमान के द्वारा संजय कुमार को वर्ष 2011 में भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री पद से नवाज़ा गया।

इस दौरान अपनी सेवाएं देते हुए इन्होंने संगठन की मजबूती के लिए पूरी जान फूँक दी। फिर चाहे जिला पंचायत चुनाव हो, नगर पालिका का चुनाव हो या नगर निगम का चुनाव सभी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए इन्होंने पार्टी को जीत दिलवाने में सहयोग प्रदान किया।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान संगठन को एकजुट करने व भाजपा को भारी मतों से विजयी बनाने में संजय कुमार के विशेष योगदान को कोई भुला नहीं सकता। वहीं संगठन के प्रचारक व मंत्री रहने के साथ ही इन्होंने संगठन की लोकप्रिय पत्रिका ‘राष्ट्रदेव’ का वर्ष 2008 से 2011 तक संपादन किया। वहीं उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘देवकमल’ के प्रकाशन में भी सहयोग प्रदान किया।

कईं वर्षों तक पार्टी की हृदय से सेवा करने एवँ इतनी खूबियां होने के बावजूद भी वरिष्ठ नेता संजय कुमार को हाशिये पर धकेल दिया गया। उनपर एक ऐसा आरोप लगाया गया जो अभीतक सच साबित नहीं हो पाया है। कहना न होगा कि इस ‘निराधार आरोप’ ने सच्चे और ईमानदार व्यक्तिव के धनी संजय कुमार की ज़िंदगी ही बदल दी है। विरोधियों के षड्यंत्र के जाल में फंसे एक कर्मठ व जुझारू नेता का मीडिया ट्रायल कर लगभग सामाजिक बहिष्कार तक कर दिया गया। वहीं उनके इस बुरे वक़्त में उन सभी महान उपलब्धियों व कार्यों को भुला दिया गया जो उन्होंने बीते समय में किये थे।

ऐसे में सवाल उठता है कि बगैर किसी ठोस सबूत के महज़ के गलत आरोप के चलते किसी सही व्यक्ति का सामाजिक व राजनीतिक बहिष्कार सही है, जबकि उन्होंने उत्तराखंड में भाजपा को सफलता के शिखर पर पहुंचाने में विशेष योगदान दिया है। वे पार्टी के एक मजबूत स्तम्भ रहे हैं। जिसे कुछ लोगों के द्वारा नज़र अंदाज़ किया जा रहा है।

एकबार फिर से उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में भाजपा को इनकी आवश्यकता उसी प्रकार खास हो जाती है जिस प्रकार महाभारत में संजय की।

यदि राजनीतिक जानकारों की मानें तो मौजूदा समय में उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति सही नहीं है। पूर्वानुमान लगाए जा रहें हैं कि पार्टी राज्य की कईं महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों पर हार का मुँह देख सकती है। ऐसे में संगठन के भीतर दबे स्वर में आवाज़ें आ रही हैं कि संजय कुमार की संगठन में एक बार फिर से वापसी करवाई जाए। क्योंकि पार्टी के बड़े नेताओं से लेकर छोटे सक्रिय कार्यकर्ता तक ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि भाजपा की मजबूती के लिए एवँ उत्तराखंड में एक बार पुनः विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलवाने के लिए ” उन खेवनहारो को लाना जरूरी है जिनको पार्टी ने घर बैठा रखा है या यूं कहें कि संगठन ने उनकी सुध नहीं ली।

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