राजद्रोह कानून: 12 साल, 867 केस और 13 हजार आरोपी, लेकिन जुर्म साबित हुआ सिर्फ 13 का
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह राजद्रोह कानून की समीक्षा के लिए तैयार है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी केंद्र के इस रुख के बाद कहा है कि जब तक सरकार राजद्रोह कानून के भविष्य पर फैसला नहीं करती, तब तक इसे रद्द किया जाएगा और इसके आरोपी भी जमानत याचिका दायर कर सकते हैं। कोर्ट और केंद्र की तरफ से राजद्रोह कानून पर इस तेज-तर्रार रवैये को लेकर अब इसके औचित्य पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। दरअसल, कोर्ट कई मौकों पर इस कानून की संवैधानिक वैधता पर ही सवाल उठा चुका है, साथ ही इसके गलत इस्तेमाल की बात भी कह चुका है।ऐसे में अमर उजाला आपको बताएगा कि आखिर राजद्रोह कानून के औचित्य पर सवाल उठ क्यों रहे हैं और आखिर कैसे पिछले 12 साल में राजद्रोह के मामले में जबरदस्त उछाल आया। खासकर मोदी सरकार के राज में कैसे यह मामले तेजी से बढ़े। इसके अलावा एनसीआरबी ने जबसे इससे जुड़ा डेटा प्रकाशित करना शुरू किया, तब से इन आंकड़ों के बीच में कितना फर्क देखने को मिला है?
पहले जानें- 12 साल में कितनी बार इस्तेमाल हुआ यह कानून?
राजद्रोह कानून पर 2010 से 2021 तक का डेटा रखने वाली वेबसाइट आर्टिकल 14 के मुताबिक, इस पूरे दौर में देश में राजद्रोह के 867 केस दर्ज हुए। वेबसाइट ने जिला कोर्ट, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, पुलिस स्टेशन, एनसीआरबी रिपोर्ट और अन्य माध्यमों के जरिए बताया है कि इन केसों में 13 हजार 306 लोगों को आरोपी बनाया गया। हालांकि, जितने भी लोगों पर केस दर्ज हुआ था, डेटाबेस में उनमें सिर्फ तीन हजार लोगों की ही पहचान हो पाई।
11 साल में ये हाल, तो मोदी सरकार में क्या हुआ?
रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से 2021 तक 595 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए। यानी 2010 से दर्ज हुए कुल मामलों में से 69 फीसदी एनडीए सरकार में ही दर्ज हुए। अगर इन मामलों का कुल औसत निकाला जाए तो जहां 2010 के बाद से यूपीए सरकार में हर साल औसतन 68 केस दर्ज हुए, तो वहीं एनडीए सरकार में हर साल औसतन 74.4 मामले दर्ज हुए।