पिता की बनाई पार्टी और चुनाव चिह्न दोनों उद्धव के हाथ से निकले, ठाकरे परिवार का आगे क्या होगा?
19 जून 1966 को बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना का गठन किया। पार्टी के 57 साल के इतिहास में ठाकरे परिवार को शुक्रवार को सबसे बड़ा झटका लगा। पिता की बनाई पार्टी उद्धव ठाकरे के हाथ से आखिरकार पूरी तरह से निकल गई। पार्टी का नाम तो गया ही साथ ही चुनाव निशान भी ठाकरे परिवार के हाथ से चला गया। ऐसा नहीं है शिवसेना में पहली बार कोई बगावत हुई थी। इससे पहले भी तीन बार पार्टी में बगावत हुई। लेकिन, 57 साल में पहली बार होगा जब बिना ठाकरे सरनेम का कोई नेता पार्टी का प्रमुख बनेगा। आइये इस फैसले का ठाकरे परिवार पर पड़ने वाले असर के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही इस बगावत से पहले पार्टी में हुई बगावतों की कहानी भी जानते हैं। चुनाव आयोग के फैसले के बाद पार्टी के कार्यालयों से लेकर पार्टी से जुड़े सभी संसाधनों को लेकर भी लड़ाई शुरू हो सकती है। शिवसेना भवन को लेकर भी शिंदे गुट अब अपना अधिकार जता सकता है। हालांकि, एक्सपर्ट कहते हैं कि इसके लिए ये देखना होगा कि शिवसेना भवन किसके नाम पर है। अगर किसी ट्रस्ट के जरिए इसका रजिस्ट्रेशन है तो उस ट्रस्ट में कौन-कौन शामिल है।
ठाकरे गुट के पास रास्तों की बात करें तो सबसे पहले उद्धव गुट आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। उद्धव गुट कोर्ट का फैसला आने तक चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने की मांग कर सकता है। वहीं, जल्द ही होने वाले बीएमसी चुनाव में उद्धव गुट नए पार्टी के नाम और चुनाव निशान पर लड़कर बेहतर प्रदर्शन करके आयोग के फैसले पर सवाल खड़ा कर सकता है। इसे लेकर संजय राउत का बयान भी सामने आया है। राउत ने कहा कि हम नया चुनाव चिह्न लेकर लोगों के बीच जाएंगे और फिर से वही शिवसेना बनाकर दिखाएंगे।