हिमालय दिवस पर विशेषः आपदाओं को न्यौता दे रही हिमालयी क्षेत्र की कटोरानुमा आकृति
रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) ने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, भारत सरकार के प्रोजेक्ट नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन ईको सिस्टम के तहत 11 घटकों पर शोध किया है। इसके तहत किए गए टोपोग्राफी एनालिसिस में हिमालय के अपर गंगा बेसिन (यूजीबी) की आकृति कटोरे की भांति उभरकर सामने आई है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस आकृति के कारण यहां बनने वाला मानसून का प्रभाव आगे नहीं बढ़ पाता और घाटियों में अधिक तापमान के चलते बादल और पानी का घनत्व ऊपर जाकर बढ़ जाता है।
इसके परिणामस्वरूप खास जगहों पर अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही है। वैज्ञानिकों ने शोध में 2010 से 2020 के बीच हुई 57 बादल फटने और अतिवृष्टि की घटनाओं के आधार पर जोखिम और खतरे की जद में आए जिले और ब्लॉक को भी चिह्नित किया है। प्रोजेक्ट के कोआर्डिनेट डॉ. एमके गोयल, डॉ. मनोहर अरोड़ा, डॉ. पीके मिश्रा, डॉ. संजय जैन और डॉ. एके लोहानी ने बताया कि इस शोध का मुख्य उद्देश्य जोखिम भरे स्थानों की पहचान करना था ताकि इन जगहों पर आपदाओं से पहले और बाद में किए जाने वाले उपायों को अमल में लाया जा सके।