झांसी की रानी का था सीहोर से खास नाता, बांदा के नवाब ने दिया था 1857 की क्रांति में साथ

अंग्रेजों से लोहा लेने वाली रानी लक्ष्मी बाई की आज यानि 18 जून को पुण्यतिथि है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की महानायिका महारानी लक्ष्मीबाई का सीहोर से खास रिश्ता था। सीहोर में एक परिवार ऐसा भी है, जिनके पुरखों ने महारानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था। नवाब बांदा के वंशज पूर्व प्रबंधक तिलहन संघ आफाक अली बहादुर ने बताया है कि कालपी बांदा रियासत का हिस्सा था। वहां के तत्कालीन नवाब अली बहादुर भी अपनी पांच हजार सेना के साथ झांसी की रानी के साथ मिले थे और अंग्रेजों से जंग की थी। 18 जून 1857 को ग्वालियर के पास ब्रिगेडियर स्मिथ से युद्ध हुआ था। जिसमें झांसी की रानी वीरगति को प्राप्त हुई थीं। वहां बाबा गंगादास की कुटिया में रानी का अंतिम संस्कार नवाब अली बहादुर की देखरेख में किया गया था। इसकी वजह यह थी कि रानी ने अली बहादुर को राखी बांधी थी। इस कारण अपनी बहन के सम्मान के लिए भी उन्होंने नवाबी का मोह त्याग कर अंग्रेजों के खिलाफ जंग की थी। झांसी की रानी के उत्सर्ग के बाद नवाब अली बहादुर और तात्या टोपे जैसे  क्रांतिकारी अनेक रियासतों में गए लेकिन अंग्रेजों के भय से किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। अंत में नवाब अली बहादुर ने राजगढ़ के किले में अंग्रेजों के सामने आत्म समर्पण कर दिया। वहीं आफाक अली बहादुर के वालिद (पिता) मरहूम नवाब सैफ अली बहादुर बताया करते थे कि स्टेट जाने के बाद नवाब अली बहादुर अपने परिवार और सैनिकों के साथ सागर, नरसिंहपुर, लखनादौन, छिंदवाड़ा होते हुए बैतूल के पास जंगल में अपना पड़ाव डाले हुए थे। इस दौरान उन्होंने भोपाल रियासत और इंदौर स्टेट से मदद मांगी थी। इसकी भनक लगते ही अंग्रेजों ने घेर लिया और सरेंडर करा लिया। महू में कोर्ट मार्शल किया गया। तभी इंदौर के महाराजा होल्कर ने दखल देकर उन्हें इंदौर में बसाया था। नवाब अली बहादुर को महाराजा बनारस अपने साथ बनारस ले गए। जहां उनका हार्टअटैक से इंतकाल हो गया। बांदा परिवार के वंशज 1948 में सीहोर आये थे जो आज भी गोहापुरा कस्बा स्थित बांदा कंपाउंड में निवासरत हैं।

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